Wednesday, December 30, 2009

तुम बिन जाने किन चिन्हों से ...


तुम बिन जाने किन चिन्हों से , अपना मन बहलाऊँगा ...
तुम से ही तो अब तक मैं , जाना जाता हूँ दुनिया में ....
तुम जाओगे फिर ना जाने , मैं खुद को क्या कहलाऊँगा ...
कुछ शब्द कहूँगा तुम से मैं , दो हाथ बढ़ेंगे जोकर से ...
फिर अपने इक करतब से तुमको , मैं तुमको यूँ सहलाऊँगा ...
फिर तेरे हाथों की रेखाओं से , मैं दर्द तुम्हारा खींचूंगा ...
फिर सतरंगी पिचकारी से, मैं तुमको यूँ नहलाऊँगा ...

फिर एक सदी जो बीतेगी , तुम बिन फिर चौराहे पर ...
फिर लोग कहेंगे जाने क्यूँ , उस लाल हवेली में अक्सर ...
देखा हमने दर्द पनपते , फिर देखा दर्द दोराहे पर ...
फिर लोग कहेंगे जाने क्यूँ , वो शख्स अकेला दिखता है ...
फिर एक कटोरी नज़र के बिन मैं , फिर जोकर कहलाऊँगा ...
फिर अपने करतब से खुद को , बस खुद को ही सहलाऊँगा ...
तुम जाओगे फिर ना जाने , तुम बिन क्या कहलाऊँगा ...

Tuesday, November 24, 2009

अत्याचारी झुंड हो ...

अत्याचारी झुंड हो , फिर भी तुझे घमंड हो ...
कि लड़ पड़ेगा तू कि जब भी मृत्यु-दंड हो ...

अश्रु-धार यूँ गिरे , स्वर्ण-भाग्य यूँ फिरे ,
कि जैसे राम का भी रावण समान हाल हो ...
निकल पड़ा है रण में तू, कि अस्त्र शस्त्र ढाल हो ,
जो गिरे धरा पे नीर ,तो फिर लाल सा गुलाल हो ..
जो व्यूह चीर दे तुझे, उसकी भी क्या मजाल हो ...
रंगित हुए तेरी आत्मा , भंगित हुए तेरी साधना ,
पर ध्यान यूँ रहे धवल, कि जैसे सीध में कपाल हो ...

आये शूल राह में , पड़े धूल निगाह में ...
अचल चलेगा तू, कि चाहे हिम समान ठण्ड हो ...
सोच मर पड़े, कि चाहे रक्त सड़ पड़े ,
कोशिश करेगा तू , कि जैसे शिव समाँ प्रचंड हो ...
जीत की फिर चाह में , तू खुद से ही क्यूँ न लड़ पड़े ...
अखिल रहेगा तू कि जैसे विष्णु सम अखंड हो ...


अत्याचारी झुंड हो , फिर भी तुझे घमंड हो ...
कि लड़ पड़ेगा तू कि जब भी मृत्यु-दंड हो ..
अखिल रहेगा तू कि जैसे विष्णु सम अखंड हो ...