Thursday, October 18, 2012

जब फिर स्वराज निर्णय होगा ...


रोटी के भूख की मारी है,
ये जनता जुल्म से हारी है,
जब जिद्द पे अड़ जाए शासक,
समझो तख़्त-पलट की बारी है ...

जो इनकी तो मनमानी है,
तो हमने भी हठ पे ठानी है,
चाहे छलनी हो जाएँ मगर,
फिर से तहरीर बनानी है ...

फिर वात-वृक्ष जड़ से हिल जाए,
जब चाकू की धार सजेगी,
फिर होगा श्रृंगार लहू से,
जब बारूदी बन्दूक बजेगी ...

फिर होगा न फेर-बदल हिस्सों का
फिर होगी न भूमि अष्ट-भाग,
फिर इन्द्र-धनुष उदय होगा,
जब फिर स्वराज निर्णय होगा ...

Saturday, September 08, 2012

तू जो रंगमंच में खड़ा ...


तेरी लालिमा सी रंग हो,
तेरा बज रहा मृदंग हो,
तू चीरता हर ध्यान हो,
तेरी वीरता अभिज्ञान हो ...

तू ना विश्वामित्र है,
ये कौन सा चरित्र है,
तू कर्ण धर्मयुद्ध में,
धवल सी हार-चित्र है ...

शत्रु भले सशस्त्र हो,
पर तुझमें भी चंडी-रक्त हो,
तू चेतना में डाल चीख,
तू वेदना को पाल औ सीख ...

तू जो रंगमंच में खड़ा,
और इम्तिहान हो कडा...
तू सिंह की दहाड़ रख,
तू सब्र का पहाड़ रख ...
तू सिंह की दहाड़ रख,
तू सब्र का पहाड़ रख ...

Monday, January 16, 2012

हार जीत अब प्रश्न नहीं है ...


हार जीत अब प्रश्न नहीं है, प्रश्न नहीं तेरी अभिलाषा ...
प्रश्न नहीं मेरा यह चिंतन, प्रश्न नहीं अब कोई ज़रा सा ...
तुम अर्धसत्य , तुम विवरण मेरे ,तुम मेरी ही संरचना हो ...
तुम दर्द कहीं, मुस्कान नहीं, तुम कहीं व्यूह की रचना हो ...

तुम काल कहीं, तुम रूप कहीं ; कहीं पे तुम खुद मौलिकता हो ,
ब्रह्म कहीं, ब्रह्माण्ड कहीं तुम ; तुम कहीं पे नन्ही सी कविता हो ,
कहीं अणु हो, कहीं अनुशाशन ; कहीं छंद हो, कहीं नाद तुम ,
कहीं नीर तुम , कहीं हो ज्वाला ; कहीं जन्म तुम, कहीं चिता हो !

तेरा प्रश्न पता करने को, जाने क्या क्या मंज़र देखा ...
कुछ आँखों में तपती गर्मी, कुछ आँखों में खंजर देखा ...
कुछ में देखा अक्स तुम्हारा, कुछ में चुप्पी की इक भाषा ...
कुछ आँखों में रातें देखी, कुछ में देखी दिन की आशा ...
हार जीत अब प्रश्न नहीं है , प्रश्न नहीं तेरी अभिलाषा ...