Monday, January 16, 2012

हार जीत अब प्रश्न नहीं है ...


हार जीत अब प्रश्न नहीं है, प्रश्न नहीं तेरी अभिलाषा ...
प्रश्न नहीं मेरा यह चिंतन, प्रश्न नहीं अब कोई ज़रा सा ...
तुम अर्धसत्य , तुम विवरण मेरे ,तुम मेरी ही संरचना हो ...
तुम दर्द कहीं, मुस्कान नहीं, तुम कहीं व्यूह की रचना हो ...

तुम काल कहीं, तुम रूप कहीं ; कहीं पे तुम खुद मौलिकता हो ,
ब्रह्म कहीं, ब्रह्माण्ड कहीं तुम ; तुम कहीं पे नन्ही सी कविता हो ,
कहीं अणु हो, कहीं अनुशाशन ; कहीं छंद हो, कहीं नाद तुम ,
कहीं नीर तुम , कहीं हो ज्वाला ; कहीं जन्म तुम, कहीं चिता हो !

तेरा प्रश्न पता करने को, जाने क्या क्या मंज़र देखा ...
कुछ आँखों में तपती गर्मी, कुछ आँखों में खंजर देखा ...
कुछ में देखा अक्स तुम्हारा, कुछ में चुप्पी की इक भाषा ...
कुछ आँखों में रातें देखी, कुछ में देखी दिन की आशा ...
हार जीत अब प्रश्न नहीं है , प्रश्न नहीं तेरी अभिलाषा ...