ये जनता जुल्म से हारी है,
जब जिद्द पे अड़ जाए शासक,
समझो तख़्त-पलट की बारी है ...
जो इनकी तो मनमानी है,
तो हमने भी हठ पे ठानी है,
चाहे छलनी हो जाएँ मगर,
फिर से तहरीर बनानी है ...
फिर वात-वृक्ष जड़ से हिल जाए,
जब चाकू की धार सजेगी,
फिर होगा श्रृंगार लहू से,
जब बारूदी बन्दूक बजेगी ...
फिर होगा न फेर-बदल हिस्सों का
फिर होगी न भूमि अष्ट-भाग,
फिर इन्द्र-धनुष उदय होगा,
जब फिर स्वराज निर्णय होगा ...