Friday, January 02, 2015

क्या मुश्किल जासूस ने पूछा ...

क्या मुश्किल जासूस ने पूछा ,
लॉलीपॉप फिर चूस के पूछा ,
क्या विघ्न है आई कुछ तो बोलो
अपने दिल का दुखड़ा खोलो,
मैं सौ मुश्किल की चाभी हूँ ,
मैं बड़े बड़ों पे हावी हूँ ,
मैं हर हालात प्रभावी हूँ ...
मेरे मुह में शब्द रुके थे,
ग्‍लानि-भाव से नैन झुके थे,
महाराज क्या छिपा आपसे,
साथ में अपने गेम हुआ है ...
इस ढलती उम्र में फिर से मुझको ,
इक कन्या से प्रेम हुआ है ...
पल भर में जासूसी उसकी ,
मंद मंद में ले ली मुस्की ...
पहले गाँधी-पेपर फेंको,
फिर इसकी तरकीब भी देखो ..
फिर कन्या-शास्त्र दिखाउँगा
प्रेमी ब्रह्मास्त्र सिखाउँगा ...
हमने कहा ठीक है ये सब ,
पर हमको इतना सिखलाओ,
बाबूजी कंट्रोल में आयें,
ऐसा कोई नुस्खा दिखलाओ ...
बाबूजी गर माने ही ना,
तो प्रेम अधूरा रह जायेगा ,
थोड़े दिन में स्वप्न प्रेम का
प्रेम-गटर में बह जायेगा ...
डर था मुझको बाबूजी का,
खाल उधेड़ेंगे पीठ की ,
फिर बोलेंगे बेटा मैने ,
बस लाज रखी है पित्र-रीत की ...
फिर सपने में मुझको खुशबू,
आई ऐसी प्रेम-जीत की ...
लगे शैल फिर कदम चूमने,
मन ही मन में प्रेम-प्रीत की ...
बाबूजी की चिंता छोड़ो,
उनको दूंगा ऐसी घुट्टी,
पल में उनको मोम करूँगा,
कर दूंगा उनकी मैं छुट्टी ...
नहीं हुई गर शादी उस से ,
ब्रह्मचर्य लेना फिर झूट्ठी ...
फिर प्रियतमा से प्रेम जताना ,
कुछ ऐसे हथकंडे अपनाना ....
उसको कहना डार्लिंग तुमको ,
चाँद सितारे तोड़ के दूंगा ...
तुमको हर टूटी सेंडिल फिर,
फेवीकोल से जोड़ के दूंगा ...

प्रेम-परीक्षा में तुमको मैं ,
लक्षम्ण रेखा मोड़ के दूँगा ...
प्राण-प्रिये फिर प्रूफ में तुमको ,
परमाणु बम फ़ोड़ के दूँगा ...
है दावा जासूस जॉन का ,
टूटे दिल फिर जोड़ के दूँगा ...
है दावा जासूस जॉन का ,
टूटे दिल फिर जोड़ के दूँगा ...

गर हम भी 'लव मॅरेज' करते ...


हमसे भी जलते सब लोग ,
और अपनी तारीफों के पुल बँधते ...
गर हमको भी प्रेम हुआ होता ,
गर हम भी 'लव मॅरेज' करते ...

अपना था बचपन से सपना,
की नैन-मटक्का होता अपना ...
रात रात भर नींद ना आती ,
सपनों में प्रियतमा दिख जाती ...

जो गर्लफ्रेंड के छूते हाथ ,
मन के अंदर होता विस्फोट,
और 'लूसर' फ्रेंड्स जो उस से मिलते,
उनको दिल ही दिल में लगती चोट ....

देख के अपनी हॉट गर्लफ्रेंड ,
मन ही मन सब आहें भरते ...
गर हमको भी प्रेम हुआ होता ,
गर हम भी 'लव-मॅरेज' करते ...

पर हम बँधते प्रेम-सूत्र में ,
ये नियती को मंज़ूर नहीं था ...
पर हम रहते फिर सदा ही 'लूसर'
वक़्त इतना भी क्रूर नहीं था ...

मेरी बढ़ती उम्र देख कर ,
बाबूजी थोड़ा घबराये ,
बढ़ा चढ़ा के पेपर में फिर,
रंगीले इश्तिहार छपवाये ...
इश्तिहार कुछ ऐसा निकला,
रंग साँवला , रूप छरहरा ,
पर लड़का अपना बड़ा स्मार्ट है ...
नम्र बोल है , कद सुडौल है ...
सलमान सा दिखता बॉडी-गार्ड है ...
थोड़ा सा शर्मीला है पर,
समझो लड़का वाइल्ड-कार्ड है ...

इश्तिहार का जादू देखो ,
अब अपना स्टेटस चेंज हुआ ,
लव मॅरेज हो ना पाया तो क्या ,
अपना मॅरेज तो अरेंज हुआ ...
फिर प्यारी बातें करने को ,
नंबर जब से एक्सचेंज हुआ ...
अब फीफा भी देख नहीं सकते ,
वक़्त ऐसा कुछ स्ट्रेंज हुआ ...

जाने फिर क्यूं मैं बड़ा हुआ ...


बचपन में माँ के हाथों से ,
दो रोटी खाने मिलती थी ...
और सुराही का पानी ...
और सोते सोते मिलते थे सुनने को ,
दूर देश परियों की रानी ...
और फिर गहरी नींद में सोता,
सुन के हर दिन वहीं कहानी ...
फिर ना जाने कब मैं बड़ा हुआ ,
कॉलेज की डिग्री लेकर मैं ,
पैसों का महल बना के मैं ,
अपने पैरों पर खड़ा हुआ ...
अब हर दिन नये लोग मिलते हैं ,
अब हर दिन सुनते नयी कहानी ,
पर अब कभी नहीं सुनने को मिलती,
दूर देश परियों की रानी ...
और अब भी दो ही रोटी खाने मिलती है ,
जाने फिर क्यूं मैं बड़ा हुआ ...

काश हमारे दिन फिर जाते ...


काश हमारे दिन फिर जाते ,
हम भी खुशियों से घिर जाते ...
होती अपने पास 'फेरारी' ,
करते उसमें बैठ सवारी ...
अपने आगे पीछे मॉडल्स,
उनकी बाहों में गिर जाते ...
काश हमारे दिन फिर जाते,
हम भी खुशियों से घिर जाते

.... पैसों का अंबार जो होता,
बॉस का अत्याचार ना होता ...
अप्रेज़ल ना भरना होता,
काश ना नाटक करना होता ...
फिर कभी ना खूनी मंडे अपने,
नीले तारों से घिर जाते ...
काश हमारे दिन फिर जाते ,
हम भी खुशियों से घिर जाते ...

काश रोज फटकार ना मिलती,
हाय तौबा और मार ना मिलती ...
काश मैं वीकेंड लेट से उठ-ता ,
काश मुझे भी 'बेड-टी' मिलती ...
हाय काश मेरी ना शादी होती,
यूँ जीवन की बर्बादी होती ...
हम भी फिर बेवक्त कहीं भी,
शान से पार्टी करने जाते ....
काश हमारे दिन फिर जाते ,
हम भी खुशियों से घिर जाते ...

हाय काश मेरा ना परिणय होता ,
ये अत्याचारी निर्णय होता ...
फीफा दर्शन चैन से होता ,
फिर मैं भी सूपर-मैन सा होता ...
ना चलती हरदम धौंस प्रिये की,
ना हर दिन उसके कपड़े धोता ....
इडीयट बॉक्स का चैनल हरदम ,
काश अपने कोंट्रोल में होता ...
जब मेरी छाती पे चढ़ती वो,
काश मैं शिव के रोल में होता ...
हम अपनी फिर विजय मनाने,
काश किसी फिर क्लब में जाते ...
काश हमारे दिन फिर जाते,
हम भी खुशियों से घिर जाते ....

पर वीरों का कुछ तो दाम रख ...


हैं सज्ज पितामह तीरों से ,
है भूमि रिक्त अब वीरों से ,
बलराम शिष्य तू नाम रख ,
तुू अपने हित पांचों ग्राम रख ...
पर वीरों का कुछ तो दाम रख ...
पर वीरों का कुछ तो दाम रख ...

तू बाँध सका ना अट्टहास,
तू कर दुर्योधन फिर प्रयास ,
तूने मुट्ठी में रेत दबाया है ,
पर रेत कहाँ रुक पाया है ?
ले कर दुर्योधन हर एक श्वास,
मुझपे तू फिर से फेंक पाश ...
तू कर दुर्योधन फिर प्रयास ...
तू कर दुर्योधन फिर प्रयास ...

मैं मस्तक , मैं ही कपाल ,
मैं महादेव , मैं इन्द्र-जाल ,
नवजात शिशु , मैं ही हूँ वृद्ध ,
मैं गरल सर्प , मैं ही हूँ गिद्ध ...
मैं जिज्ञासु , मैं अन्तर्यामी ...
मुझमें बसता हर एक प्राणी ...
क्या विचलित और क्या ध्यानी ...
तू बाँध मुझे न अज्ञानी ...
तू बाँध मुझे न अज्ञानी ...

मोक्ष भी मैं , मैं ही हूँ पाश ,
मैं सृष्टि बीज , मैं सर्वनाश ...
मैं हिमचोटि मैं अग्निकुंड ,
मैं एकाकी , मैं सहस्र झुण्ड ...
मैं निर्मल , मैं ही मैला,
मैं सीमित , मैं ही फैला ...
भक्षक भी मैं , मैं ही रक्षक,
यमराज का मैं अंतिम दस्तक ...
ब्रह्म भी मैं , मैं नील-कंठ ...
अणु भी मैं , मैं ही अनंत ...

मैं निर्माण यहाँ , विध्वंस यहा ,
मैं ही ममता , मैं दंश यहाँ ,
मैं पांडव कौरव वंश यहाँ ...
मैं सूर्य चंद्र का अंश यहाँ ...
मैं ही बिक्रम बैताल यहाँ ...
मैं ही पृथ्वी पाताल यहाँ ...
मैं ही अर्जुन, मैं कर्ण यहाँ ,
श्वेत श्याम सब वर्ण यहाँ ...

मैं ही अग्नि , मैं जल भी हूँ ,
मैं भूत काल, मैं कल भी हूँ ...
लौह भी मैं , मलमल भी मैं ,
तेरी मृत्यु का पल पल भी मैं ...
तेरी मृत्यु का पल पल भी मैं ...

है रक्त से जिह्वा लाल देख,
तू रणभूमि का हाल देख,
चहुँ ओर तीर सा बरस रहा,
इक बूँद नीर को तरस रहा ,
र क्त श्वेद अश्रु से लथपथ,
भूमि पर तू कर रहा है छटपट ,
है कैसा तेरा हाल देख ...
तू अपना नर कंकाल देख ...
तू अपना नर कंकाल देख ...

है वक़्त की कैसी मार देख,
तू रण में अपनी हार देख ,
कि मृतक पड़ा संसार देख,
गुरु द्रोण पितामह कुन्ती-पुत्र पे ,
हो चुका है अंतिम वार देख ,
तू अपने कर्मों का भार देख ...
तू अपने कर्मों का भार देख ...

- कृष्ण

ओ री मेरी प्यारी मैया ...


लाड ना देना,
प्यार ना देना,
तुम ना देना पुचकार ,
पर कोख में मुझको,
जनम से पहले,
ओ री मेरी प्यारी मैया,
तू मुझको ना मार ...
अन्न ना देना,
जल ना देना,
पर ना करना तुम ऐसा मैया,
की तुम मुझको कल ना देना,
बाबा कहते हैं ना हरदम,
भैया के घर में आने से,
उनका चलेगा अब घर बार,
मैया मुझको भी एक मौका दे दे,
मैं भी छोटे पंख लगाकर,
करूँगी उनके सपनों का विस्तार ...
पर ओ री मेरी प्यारी मैया,
जनम से पहले,
तू मुझको ना मार ...
मैं पड़ी रहूँगी कोने मे,
हरदम एक बिछौने में ,
तू अपने हाथ ना मैले करना ,
मेरे कपड़े धोने में ...
पर तेरी एक हँसी को मैया ,
मैं रहूँगी हरदम ही तैयार ...
पर ओ री मेरी प्यारी मैया,
जनम से पहले,
तू मुझको ना मार ...
हर जनम में मेरी चाह यहीं,
की मैं तुझसे ही लूँ अवतार ...
पर मुझको ये डर है मैया ,
की मुझको बाबा बेच ना दें ,
की मेरा ना हो फिर व्यपार,
की दुनिया में बहुत बड़ा बाज़ार ...
ऐसा ही होना है तो ,
तो ओ री मेरी प्यारी मैया,
जनम से पहले ,
कोख में अपने ,
तू मुझको दे मार ...
की तेरा बहुत बड़ा आभार ...
कि मैं हूँ नहीं कोई व्यापार ...
कि मैं हूँ नहीं कोई व्यापार ...

धोबी का कुत्ता; ना घर ना घाट का ...


इक बड़े बियावह जंगल में ,
छोटा सा इक श्‍वान मगन था ...
पीने को था मीठा पानी,
और सर के उपर नील गगन था ...
इक दिन बीच राह में उसको,
रस्ते पर एक गधा मिला ...
लाल रंग के खूँटे से वो,
घाट किनारे बँधा मिला ...
कहाँ जा रहा नालायक,
कहा गधे ने बड़े शान से ...
यूँ मस्ती मे चला ना कर तू,
दूँगा नीचे एक कान के ...
देख यहाँ पे हर दिन मैं ,
अरबों के भाव कमाता हूँ ...
और दिन ढ़लने पर हर दिन ऐसे ,
बूँदी के लड्‌डू खाता हूँ ...
गर काम करेगा साथ मेरे तो ,
तुझको मालपुआ खिलवा-उँगा,
पैसों का अंबार लगा कर ,
तुझको तेल-कुआँ दिलवा-उँगा ...
अपने सूत्रधार ने अब तक ,
ऐसे स्वपन न देखे थे ,
ऐसी चिकनी चुपड़ी बातें ..
ऐसे कथन न देखे थे ...
तो बन के जोड़ीदार श्‍वान का,
उसको अपना मित्र बनाया ,
हवामहल का शासक है वो ,
उसको ये चल-चित्र दिखाया ...
अब कुत्तों की टोली का,
बन चुका है अब सरदार गधा ...
और सबको देता इक ही मूल्यांकन,
कार्यकुशल हर बार गधा ....
अब ऐसा है दृश्य यहाँ का,
है गधा गुरु बन बैठा और ,
और श्‍वान बना है शिष्य यहाँ का ...
है नायक की उम्र तीस पर,
लगता जैसे हुआ साठ का ...
यूँ ही तो कहते लोग नहीं ,
धोबी का कुत्ता; ना घर ना घाट का ...