Wednesday, December 28, 2016

सब में राम है सब में रावण ...

दसग्रीव यहाँ पे मर जाएँ,
सब अवगुण मेरे हर जाएँ ,
पुतले को जला दिया मैंने ,
पर मन में तो लंका बैठी है ...
क्या सच में रावण दहन किया ?
मन में ये शंका बैठी है ...
क्या सच में रावण दहन किया ?
मन में ये शंका बैठी है ...

माता का हरण करे कोई,
तो क्यों न अज्ञानी कहलाये,
पर जो अग्नि के सम्मुख करे उन्हें,
फिर वो क्यों ज्ञानी कहलाये ?
आधा मैला आधा पावन ,
छब्बीस गुण और अवगुण बावन ,
सब में राम है सब में रावण ...
सब में राम है सब में रावण ..


गधा भी एक दिन सोचने लगा ...

गधा भी एक दिन सोचने लगा ,
कि वो राजगद्दी पे क्यूँ नहीं बैठ सकता ...
शेर ने आखिर किया ही क्या है ...
अपने पांच साल के कार्यकाल में जनता को दिया ही क्या है ...
अब बात ऐसी थी की जंगल में जनतंत्र था ...
इसलिए गधा चुनाव में खड़ा हो सकता था ...
गधे को लगा की ये एकमात्र ऐसा मंच है ...
जिसके माध्यम से ओहदे में शेर से भी बड़ा हो सकता था ...

चुनाव की घोषणा जंगल में आग की तरह फ़ैल गयी ...
सारे जानवर खुश थे की इस बार शेर को भी टक्कर मिला है ...
अब तक एकछत्र राज था उसका ,
पर अब शेर के बच्चे को एक असली बब्बर मिला है. ...
शेर ने सोचा की कछुआ सबसे बुद्धिमान प्राणी है ...
दौड़ में उसने खरगोश को हराया था ...
इसलिए वो बुद्धिजीवी सबसे ग्यानी है ...
कछुओं से निवेदन किया की वो अपनी बुद्धिमता से शेर को ही जिताएं ,
और उपहार स्वरुप मंत्री परिषद् में अपने लड़के लाएं ...
अब कछुए थे एक नंबर के आलसी
पर उन्हें शेर को ना कहना मंजूर नहीं था ...
क्योंकि ये लोक तंत्र का दस्तूर नहीं था ...
कछुओं ने शेर की बात पे हामी भर दी
और जाने अनजाने में शेर की माँ बहन कर दी ...
अब शेर निश्चिन्त हो कर राजगद्दी पर दहाड़ मारता रहा ..
और कछुआ वहां समुद्र तट पर डकार मारता रहा ...

जैसे जैसे चुनाव का दिन नज़दीक आने लगा ...
गधा अपनी रणनीति बनाने लगा ...
चूहे तो उसके समर्थन में थे ही ...
बकरों ने कोई आपत्ति नहीं की ...
क्योंकि एक दिन तो उन्हें कटना ही था ...
शेर और गधे दोनों के रास्ते से ही हटना ही था ...
क्योंकि चुनाव से कुछ बदलता नहीं ...
वो उनके लिए बस एक पंचवर्षीय घटना ही था ...

घोषणापत्र में गधे ने कहा की सत्ता में आने पे ..
वो सबको माला-माल कर देगा ...
और भ्रष्ट नेताओं को कंगाल कर देगा ...
भेड़ों को कहा की उनको चारपाई देगा ,
और सर्दियों में उनको ऊन की रजाई देगा ...
भेड़ों को ये बात बहुत पसंद आई ,
कि नयी सरकार देगी उन्हें ऊन की रजाई ...
बांकी गधों ने बैठक बुलाकर जम कर विचार किया ,
और बिना किसी जानकारी के भावी नेता का प्रचार किया ...
चुनाव के दिन नतीजे निकले ,
तो गधे को भारी बहुमत मिला ...

गधे ने कहा की मैं भ्रष्टाचार को जला कर शुद्ध कर दूंगा ...
और अपने बाहुबल से तुम सबको मंत्रमुग्ध कर दूंगा ...
क्योंकि राजा की बग्घी को धीमा पाया गया,
इसलिए सबसे पहले घोड़े को हटा के शेर को लगाया गया ...
खाली वक़्त में शेर अब धोभी घाट पर कपडे का गट्ठर ढो रहा है ...
और ऊपर बैठा भगवान् पशु की इस मनुष्यता पे रो रहा है ...
और ऊपर बैठा भगवान् पशु की इस मनुष्यता पे रो रहा है ...

Friday, July 29, 2016

तुम तब भी रहना चट्टान अडिग ...


जब लोग यहाँ धिक्कारेंगे,
अंतर्मन को मारेंगे,
सच्चाई नहीं स्वीकारेंगे ;
तुम तब भी रहना चट्टान अडिग …
वो अंत में खुद से हारेंगे ...

चहुँ ओर दिया बुझ जाएगा,
बोझ से मन झुक जाएगा ...
हर दिशा समय रुक जाएगा ;
तुम तब भी रहना चट्टान अडिग …
चक्की में घुन पिस जाएगा ...
फिर वक़्त बदल के आएगा ...

वो अश्रु का मोल न समझेंगे,
कुछ प्यार के बोल न समझेंगे ,
मन में फिर शंका जागेगी ,
मन हर क्षण लंका भागेगी ...
दस रुपी रावण उठ जाएगा ;
तुम तब भी रहना चट्टान अडिग ...
फिर राम-राज्य छा जाएगा ...

फिर विष का सेवन करना होगा ,
अँधेरे से डरना होगा ,
फिर पैदा होगा कंस यहाँ ...
फैलेगा विध्वंस यहाँ ;
तुम तब भी रहना चट्टान अडिग ...
फिर जागेगा नर-सिंह अंश यहाँ ...

मन में क्रोध तो जागेगा ,
शैतान रगों में भागेगा ,
जब द्वेष भी हावी हो तुमपे ;
तुम तब भी रहना चट्टान अडिग ...
जब परिवेश प्रभावी हो तुमपे ...

जब दुर्योधन आग लगाएगा ,
जब कर्ण धर्म जल जाएगा ,
जब पहला निर्णय छल से होगा ;
तुम तब भी रहना चट्टान अडिग ....
क्योंकि अंतिम निर्णय बल से होगा ...
फिर न्याय यहाँ कल से होगा ....
फिर न्याय यहाँ कल से होगा ..

फेसबुक देशभक्ति ...


आधे राजनीतिज्ञ सत्ता के नशे में झूमते हैं ,
और बाँकी आधे फेसबुक पे घूमते हैं ...
नीतियाँ चाहे भारतवर्ष की हो अमरीका की,
नुक्ताचीनी करने का न कोई मौका चूकते हैं ...
अपनी सारी अंग्रेजी फेसबुक पे ही थूकते हैं ...

जितने देशभक्त आज़ादी की लड़ाई को पैदा नहीं हुए ,
उस से ज्यादा तो फेसबुक के आने पे पैदा हो चुके हैं ...
उन्हें लगता है की वो देश के सभी उलझनों को सही कर चुके हैं,
जबकि अपनी विशेष टिप्पणियों से वो सबके दिमाग का दही कर चुके हैं...
कुछ को लगता है की भगवान् या रब बन चुके हैं ...
और बाकियों को लगता है की वो अरनब बन चुके हैं ...

फेसबुक देशभक्त अपनी खोखली दलीलों से भक्तों की मरहम-पटट्टी कर रहा है ...
और उसे प्रतीत होता है की इन्ही दलीलों की वजह से देश तरक्की कर रहा है...
देशभक्तों को छोड़ दो तो बचे ही कौन ,
आशिक , बीमार , उल्लू और लाचार ...
इनसे देश को तो रत्ती भर भी खतरा नहीं है ,
क्यूंकि इनमें फेसबुक देशभक्ति का एक भी कतरा नहीं है ...
क्यूंकि इनमें फेसबुक देशभक्ति का एक भी कतरा नहीं है ...

स्याह-छींट बन गयी गवाही ...


फिर सोचा एक पतंग बनाएं ,
उसपे चढ़ कर चाँद को जाएँ ,
पीछे से हम घर कर लेंगे ,
चाँद को झोले में भर लेंगे...

हमने तिकड़म खूब भिड़ाया,
पर चाँद हमारे पकड़ न आया ...
अब जब चाँद हमारे पकड़ न आया ,
हमने कोरे कागज़ कलम चलाया ,
श्वेत रंग से सने थे पन्ने ,
पर श्वेत पन्नों में नज़र न आया ...

फिर हमने मलिन लेखपत्र सा खोला,
बड़े ध्यान से उसे टटोला ...
फिर हमने फेंकी काली स्याही,
बिन बात के फैली हर तरफ तबाही ...
श्वेतपत्र भी मलिन हुआ फिर ,
स्याह-छींट बन गयी गवाही ...

पूरी ज़िन्दगी हम तमाम कर गए...


दस प्रतिशत ज़िन्दगी लिंक्ड-इन
दस प्रतिशत फेसबुक ,
और तीस प्रतिशत व्हाट्सप्प के नाम कर गए,
और बाँकी बची ज़िन्दगी मोबाइल के पैगाम कर गए,
और इस तरह पूरी ज़िन्दगी हम तमाम कर गए ...

मिस्टर एक्स को दस प्रतिशत...
मिस्टर वाई को भी दस प्रतिशत ...
पर मिस जेड को तीस प्रतिशत बदनाम कर गए ...
और आधी बदनामी अपने नाम कर गए ...
और इस तरह पूरी ज़िन्दगी हम तमाम कर गए ...

दस प्रतिशत रक्त का हल्का बहाव
दस प्रतिशत पदोन्नति का तनाव ,
और तीस प्रतिशत रिश्तों का घाव ...
और बाँकी आधी ज़िन्दगी गधों की तरह काम कर गए ...
अपनी समझ दो कौड़ियों के दाम कर गए ...
और इस तरह पूरी ज़िन्दगी हम तमाम कर गए ...
और इस तरह पूरी ज़िन्दगी हम तमाम कर गए ...