Tuesday, November 24, 2009

अत्याचारी झुंड हो ...

अत्याचारी झुंड हो , फिर भी तुझे घमंड हो ...
कि लड़ पड़ेगा तू कि जब भी मृत्यु-दंड हो ...

अश्रु-धार यूँ गिरे , स्वर्ण-भाग्य यूँ फिरे ,
कि जैसे राम का भी रावण समान हाल हो ...
निकल पड़ा है रण में तू, कि अस्त्र शस्त्र ढाल हो ,
जो गिरे धरा पे नीर ,तो फिर लाल सा गुलाल हो ..
जो व्यूह चीर दे तुझे, उसकी भी क्या मजाल हो ...
रंगित हुए तेरी आत्मा , भंगित हुए तेरी साधना ,
पर ध्यान यूँ रहे धवल, कि जैसे सीध में कपाल हो ...

आये शूल राह में , पड़े धूल निगाह में ...
अचल चलेगा तू, कि चाहे हिम समान ठण्ड हो ...
सोच मर पड़े, कि चाहे रक्त सड़ पड़े ,
कोशिश करेगा तू , कि जैसे शिव समाँ प्रचंड हो ...
जीत की फिर चाह में , तू खुद से ही क्यूँ न लड़ पड़े ...
अखिल रहेगा तू कि जैसे विष्णु सम अखंड हो ...


अत्याचारी झुंड हो , फिर भी तुझे घमंड हो ...
कि लड़ पड़ेगा तू कि जब भी मृत्यु-दंड हो ..
अखिल रहेगा तू कि जैसे विष्णु सम अखंड हो ...