Wednesday, December 28, 2016

गधा भी एक दिन सोचने लगा ...

गधा भी एक दिन सोचने लगा ,
कि वो राजगद्दी पे क्यूँ नहीं बैठ सकता ...
शेर ने आखिर किया ही क्या है ...
अपने पांच साल के कार्यकाल में जनता को दिया ही क्या है ...
अब बात ऐसी थी की जंगल में जनतंत्र था ...
इसलिए गधा चुनाव में खड़ा हो सकता था ...
गधे को लगा की ये एकमात्र ऐसा मंच है ...
जिसके माध्यम से ओहदे में शेर से भी बड़ा हो सकता था ...

चुनाव की घोषणा जंगल में आग की तरह फ़ैल गयी ...
सारे जानवर खुश थे की इस बार शेर को भी टक्कर मिला है ...
अब तक एकछत्र राज था उसका ,
पर अब शेर के बच्चे को एक असली बब्बर मिला है. ...
शेर ने सोचा की कछुआ सबसे बुद्धिमान प्राणी है ...
दौड़ में उसने खरगोश को हराया था ...
इसलिए वो बुद्धिजीवी सबसे ग्यानी है ...
कछुओं से निवेदन किया की वो अपनी बुद्धिमता से शेर को ही जिताएं ,
और उपहार स्वरुप मंत्री परिषद् में अपने लड़के लाएं ...
अब कछुए थे एक नंबर के आलसी
पर उन्हें शेर को ना कहना मंजूर नहीं था ...
क्योंकि ये लोक तंत्र का दस्तूर नहीं था ...
कछुओं ने शेर की बात पे हामी भर दी
और जाने अनजाने में शेर की माँ बहन कर दी ...
अब शेर निश्चिन्त हो कर राजगद्दी पर दहाड़ मारता रहा ..
और कछुआ वहां समुद्र तट पर डकार मारता रहा ...

जैसे जैसे चुनाव का दिन नज़दीक आने लगा ...
गधा अपनी रणनीति बनाने लगा ...
चूहे तो उसके समर्थन में थे ही ...
बकरों ने कोई आपत्ति नहीं की ...
क्योंकि एक दिन तो उन्हें कटना ही था ...
शेर और गधे दोनों के रास्ते से ही हटना ही था ...
क्योंकि चुनाव से कुछ बदलता नहीं ...
वो उनके लिए बस एक पंचवर्षीय घटना ही था ...

घोषणापत्र में गधे ने कहा की सत्ता में आने पे ..
वो सबको माला-माल कर देगा ...
और भ्रष्ट नेताओं को कंगाल कर देगा ...
भेड़ों को कहा की उनको चारपाई देगा ,
और सर्दियों में उनको ऊन की रजाई देगा ...
भेड़ों को ये बात बहुत पसंद आई ,
कि नयी सरकार देगी उन्हें ऊन की रजाई ...
बांकी गधों ने बैठक बुलाकर जम कर विचार किया ,
और बिना किसी जानकारी के भावी नेता का प्रचार किया ...
चुनाव के दिन नतीजे निकले ,
तो गधे को भारी बहुमत मिला ...

गधे ने कहा की मैं भ्रष्टाचार को जला कर शुद्ध कर दूंगा ...
और अपने बाहुबल से तुम सबको मंत्रमुग्ध कर दूंगा ...
क्योंकि राजा की बग्घी को धीमा पाया गया,
इसलिए सबसे पहले घोड़े को हटा के शेर को लगाया गया ...
खाली वक़्त में शेर अब धोभी घाट पर कपडे का गट्ठर ढो रहा है ...
और ऊपर बैठा भगवान् पशु की इस मनुष्यता पे रो रहा है ...
और ऊपर बैठा भगवान् पशु की इस मनुष्यता पे रो रहा है ...

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