अंतर्मन को मारेंगे,
सच्चाई नहीं स्वीकारेंगे ;
तुम तब भी रहना चट्टान अडिग …
वो अंत में खुद से हारेंगे ...
चहुँ ओर दिया बुझ जाएगा,
बोझ से मन झुक जाएगा ...
हर दिशा समय रुक जाएगा ;
तुम तब भी रहना चट्टान अडिग …
चक्की में घुन पिस जाएगा ...
फिर वक़्त बदल के आएगा ...
वो अश्रु का मोल न समझेंगे,
कुछ प्यार के बोल न समझेंगे ,
मन में फिर शंका जागेगी ,
मन हर क्षण लंका भागेगी ...
दस रुपी रावण उठ जाएगा ;
तुम तब भी रहना चट्टान अडिग ...
फिर राम-राज्य छा जाएगा ...
फिर विष का सेवन करना होगा ,
अँधेरे से डरना होगा ,
फिर पैदा होगा कंस यहाँ ...
फैलेगा विध्वंस यहाँ ;
तुम तब भी रहना चट्टान अडिग ...
फिर जागेगा नर-सिंह अंश यहाँ ...
मन में क्रोध तो जागेगा ,
शैतान रगों में भागेगा ,
जब द्वेष भी हावी हो तुमपे ;
तुम तब भी रहना चट्टान अडिग ...
जब परिवेश प्रभावी हो तुमपे ...
जब दुर्योधन आग लगाएगा ,
जब कर्ण धर्म जल जाएगा ,
जब पहला निर्णय छल से होगा ;
तुम तब भी रहना चट्टान अडिग ....
क्योंकि अंतिम निर्णय बल से होगा ...
फिर न्याय यहाँ कल से होगा ....
फिर न्याय यहाँ कल से होगा ..
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