
ये वक़्त ना हंसने गाने का,
ये क्षण तो खून बहाने का ...
संग्राम खड़ा सरहाने मेरे ...
इक मुट्ठी रक्त नहाने का ...
नभ-नक्षत्र नाप में लाने का ...
फिर क्षितिज लांघ के जाने का...
फिर से त्रिशंकु बरसाने का ..
खुद पृथक राह बन जाने का
फिर शत्रु-बल हथियाने का ,
हिम की छोटी पिघलाने का,
और चहुँ ओर छा जाने का ,
फिर उत्प्लावन में बह जाने का ..
खुद को आहुत कर जाने का ..
फिर रण-कौशल दिखलाने का ..
फिर चाणक्य-नीति अपनाने का ...
जब शत्रु से शब्द ना आने का ...
तो मस्तक दांव लगाने का ..
फिर अग्नि-सिन्दूर उठाने का ...
फिर से वर्चस्व मिटाने का ...
फिर से त्रिशंकु बरसाने का ..
खुद पृथक राह बन जाने का ..