Monday, December 26, 2011

सिंह-नाद करे कोई रण में ...

सिंह-नाद करे कोई रण में, रण में कोई हुंकार करे ...
हर शीश गिरे धरती पर; जब शत्रु मर्यादा पार करे ...
जीत सके न मन को तो , तन पे ही सौ सौ वार करे ...
इक जीत तुम्हारी हो कर भी, यह जीत तुम्हारी हार करे ...

हो सजा फर्श पे अस्त्र-शस्त्र, और इक दीपक-थाल पड़ा ..
मस्तक में हो रक्त जड़ा , और मुट्ठी में लाल पड़ा ...
पौरुष से फिर फूटी धरती , फिर पूरा आकाश खड़ा ...
रक्त स्वेद से लथपथ ; फिर भी अर्जुन अविनाश अड़ा ...
यह हार जीत का निश्चय फिर, हो जाए विकराल बड़ा ...
क्या विजय-तिलक भावार्थ यहीं, कि चहुँ ओर कंकाल पड़ा ...

जो मिट्टी पे अधिकार करे, क्या मन पे भी अधिकार करे ...
बल से शरीर झुक जाए पर, मन क्यूँ शत्रु स्वीकार करे ...
छल से प्रेरित जो देव कहीं , मन उसको भी अविकार करे ...
है बड़ा विषम यह युद्ध पितामह, यह युद्ध ह्रदय पे भार करे ..

जो मिट्टी पे अधिकार करे, क्या मन पे भी अधिकार करे ...
बल से शरीर झुक जाए पर, मन क्यूँ शत्रु स्वीकार करे ...

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