Thursday, December 29, 2011

ये वक़्त ना हंसने गाने का ...


ये वक़्त ना हंसने गाने का,
ये क्षण तो खून बहाने का ...
संग्राम खड़ा सरहाने मेरे ...
इक मुट्ठी रक्त नहाने का ...

नभ-नक्षत्र नाप में लाने का ...
फिर क्षितिज लांघ के जाने का...
फिर से त्रिशंकु बरसाने का ..
खुद पृथक राह बन जाने का
फिर शत्रु-बल हथियाने का ,
हिम की छोटी पिघलाने का,
और चहुँ ओर छा जाने का ,
फिर उत्प्लावन में बह जाने का ..
खुद को आहुत कर जाने का ..
फिर रण-कौशल दिखलाने का ..
फिर चाणक्य-नीति अपनाने का ...

जब शत्रु से शब्द ना आने का ...
तो मस्तक दांव लगाने का ..
फिर अग्नि-सिन्दूर उठाने का ...
फिर से वर्चस्व मिटाने का ...
फिर से त्रिशंकु बरसाने का ..
खुद पृथक राह बन जाने का ..

4 comments:

zubin said...

Too awesome sir. Stud hain aap bahut :).

zubin said...

Too awesome sir. Stud hain aap bahut :).

SHAILABH said...

Thanks Zubin yaar ... ek comment to aaya ... main yeh soch ke bada khush hoon ....

Chitrarath said...

Grt one!