Sunday, April 14, 2013

इस सोच में बैठा हूँ मैं कब से ...

क्या मेरा क्षण-भंगुर दुस्साहस ,
हर आज में यूँ ही खड़ा रहेगा ?
कठपुतली सा मूक हमेशा ?

अपनी रोटी के ताने-बाने में ...
जाने किस झूठ बहाने में ....?

या फिर मुट्ठी भींच यह साहस ...
सच्ची मर्यादा हित लड़ा करेगा ...

इस सोच में बैठा हूँ मैं कब से ...
कल से कितना कुछ करना जीवन में ...
पर कल क्या फिर मुझको वक़्त मिलेगा ???

यह कायरता की धुंध घनी है ...
पर मैं क्यूँ तुमको दोषी ठहराऊँ ...
मैं खुद भी तो परिवर्तन को बढ़ सकता था ...
और आने वाली हर बाधा से ...
सहिष्णुता से लड़ सकता था ...

पर मैं रुक रहा जाने किस कल तक ...???

इस सोच में बैठा हूँ मैं कब से ...
कल से कितना कुछ करना जीवन में ...
पर कल क्या फिर मुझको वक़्त मिलेगा ... ?

2 comments:

Purushottam Pokhrel said...

इस सोच में बैठा हूँ मैं कब से ...
कल से कितना कुछ करना जीवन में ...
पर कल क्या फिर मुझको वक़्त मिलेगा ... ?

Purushottam Pokhrel said...

इस सोच में बैठा हूँ मैं कब से ...
कल से कितना कुछ करना जीवन में ...
पर कल क्या फिर मुझको वक़्त मिलेगा ... ?