Monday, April 28, 2014

अब तो मुझको उड़ जाने दो ...


कुछ वर्षों के बाद हुआ है ,
मन थोड़ा आज़ाद हुआ है ...
फिर आसमान जुड़ जाने दो,
अब तो मुझको उड़ जाने दो,
अब ना मुझको तुम दाने दो ...
बस अपने सपनों को पाने दो,
अब मुझको उड़ जाने दो ...
मैं देव नहीं बन पाउँगा,
पर मुझको दानव ना बन जाने दो ...
ना करुण रहे मेरे मन में,
ऐसा मानव ना बन जाने दो ...
आशायें स्वच्छन्द रहें,
मेरी मुट्ठी बंद रहे...
पर धीरे धीरे आशाओं में ,
थोड़े अंकुर तो आने दो ...
मन ही मन बुन जाने दो ,
अपने सपनों को पाने दो ...
हरी शाख, लहराते पत्ते
मुझको भी बहुत लुभाते हैं ...
घने वृक्ष और संगी साथ,
मुझको सदा बुलाते हैं ...
पर मुझको मोह ना आने दो ,
गगन-स्पर्श पा जाने दो,
अपने पर फैलाने दो ,
अब तो मुझको उड़ जाने दो ...

1 comment:

Chitrarath said...

अद्भुत..।