Friday, January 02, 2015

जाने फिर क्यूं मैं बड़ा हुआ ...


बचपन में माँ के हाथों से ,
दो रोटी खाने मिलती थी ...
और सुराही का पानी ...
और सोते सोते मिलते थे सुनने को ,
दूर देश परियों की रानी ...
और फिर गहरी नींद में सोता,
सुन के हर दिन वहीं कहानी ...
फिर ना जाने कब मैं बड़ा हुआ ,
कॉलेज की डिग्री लेकर मैं ,
पैसों का महल बना के मैं ,
अपने पैरों पर खड़ा हुआ ...
अब हर दिन नये लोग मिलते हैं ,
अब हर दिन सुनते नयी कहानी ,
पर अब कभी नहीं सुनने को मिलती,
दूर देश परियों की रानी ...
और अब भी दो ही रोटी खाने मिलती है ,
जाने फिर क्यूं मैं बड़ा हुआ ...

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