Friday, January 02, 2015

पर वीरों का कुछ तो दाम रख ...


हैं सज्ज पितामह तीरों से ,
है भूमि रिक्त अब वीरों से ,
बलराम शिष्य तू नाम रख ,
तुू अपने हित पांचों ग्राम रख ...
पर वीरों का कुछ तो दाम रख ...
पर वीरों का कुछ तो दाम रख ...

तू बाँध सका ना अट्टहास,
तू कर दुर्योधन फिर प्रयास ,
तूने मुट्ठी में रेत दबाया है ,
पर रेत कहाँ रुक पाया है ?
ले कर दुर्योधन हर एक श्वास,
मुझपे तू फिर से फेंक पाश ...
तू कर दुर्योधन फिर प्रयास ...
तू कर दुर्योधन फिर प्रयास ...

मैं मस्तक , मैं ही कपाल ,
मैं महादेव , मैं इन्द्र-जाल ,
नवजात शिशु , मैं ही हूँ वृद्ध ,
मैं गरल सर्प , मैं ही हूँ गिद्ध ...
मैं जिज्ञासु , मैं अन्तर्यामी ...
मुझमें बसता हर एक प्राणी ...
क्या विचलित और क्या ध्यानी ...
तू बाँध मुझे न अज्ञानी ...
तू बाँध मुझे न अज्ञानी ...

मोक्ष भी मैं , मैं ही हूँ पाश ,
मैं सृष्टि बीज , मैं सर्वनाश ...
मैं हिमचोटि मैं अग्निकुंड ,
मैं एकाकी , मैं सहस्र झुण्ड ...
मैं निर्मल , मैं ही मैला,
मैं सीमित , मैं ही फैला ...
भक्षक भी मैं , मैं ही रक्षक,
यमराज का मैं अंतिम दस्तक ...
ब्रह्म भी मैं , मैं नील-कंठ ...
अणु भी मैं , मैं ही अनंत ...

मैं निर्माण यहाँ , विध्वंस यहा ,
मैं ही ममता , मैं दंश यहाँ ,
मैं पांडव कौरव वंश यहाँ ...
मैं सूर्य चंद्र का अंश यहाँ ...
मैं ही बिक्रम बैताल यहाँ ...
मैं ही पृथ्वी पाताल यहाँ ...
मैं ही अर्जुन, मैं कर्ण यहाँ ,
श्वेत श्याम सब वर्ण यहाँ ...

मैं ही अग्नि , मैं जल भी हूँ ,
मैं भूत काल, मैं कल भी हूँ ...
लौह भी मैं , मलमल भी मैं ,
तेरी मृत्यु का पल पल भी मैं ...
तेरी मृत्यु का पल पल भी मैं ...

है रक्त से जिह्वा लाल देख,
तू रणभूमि का हाल देख,
चहुँ ओर तीर सा बरस रहा,
इक बूँद नीर को तरस रहा ,
र क्त श्वेद अश्रु से लथपथ,
भूमि पर तू कर रहा है छटपट ,
है कैसा तेरा हाल देख ...
तू अपना नर कंकाल देख ...
तू अपना नर कंकाल देख ...

है वक़्त की कैसी मार देख,
तू रण में अपनी हार देख ,
कि मृतक पड़ा संसार देख,
गुरु द्रोण पितामह कुन्ती-पुत्र पे ,
हो चुका है अंतिम वार देख ,
तू अपने कर्मों का भार देख ...
तू अपने कर्मों का भार देख ...

- कृष्ण

No comments: