Friday, January 02, 2015

काश हमारे दिन फिर जाते ...


काश हमारे दिन फिर जाते ,
हम भी खुशियों से घिर जाते ...
होती अपने पास 'फेरारी' ,
करते उसमें बैठ सवारी ...
अपने आगे पीछे मॉडल्स,
उनकी बाहों में गिर जाते ...
काश हमारे दिन फिर जाते,
हम भी खुशियों से घिर जाते

.... पैसों का अंबार जो होता,
बॉस का अत्याचार ना होता ...
अप्रेज़ल ना भरना होता,
काश ना नाटक करना होता ...
फिर कभी ना खूनी मंडे अपने,
नीले तारों से घिर जाते ...
काश हमारे दिन फिर जाते ,
हम भी खुशियों से घिर जाते ...

काश रोज फटकार ना मिलती,
हाय तौबा और मार ना मिलती ...
काश मैं वीकेंड लेट से उठ-ता ,
काश मुझे भी 'बेड-टी' मिलती ...
हाय काश मेरी ना शादी होती,
यूँ जीवन की बर्बादी होती ...
हम भी फिर बेवक्त कहीं भी,
शान से पार्टी करने जाते ....
काश हमारे दिन फिर जाते ,
हम भी खुशियों से घिर जाते ...

हाय काश मेरा ना परिणय होता ,
ये अत्याचारी निर्णय होता ...
फीफा दर्शन चैन से होता ,
फिर मैं भी सूपर-मैन सा होता ...
ना चलती हरदम धौंस प्रिये की,
ना हर दिन उसके कपड़े धोता ....
इडीयट बॉक्स का चैनल हरदम ,
काश अपने कोंट्रोल में होता ...
जब मेरी छाती पे चढ़ती वो,
काश मैं शिव के रोल में होता ...
हम अपनी फिर विजय मनाने,
काश किसी फिर क्लब में जाते ...
काश हमारे दिन फिर जाते,
हम भी खुशियों से घिर जाते ....

No comments: