
था अधर्म तब वहाँ,
जब लगी थी कोई दाँव पे,
था अधर्म कि सब पड़े,
ले के मौन-बेडी पाँव में ...
प्रण से बाध्य भीष्म-द्रोण ,
मूक देखते रहे ,
जब ज्येष्ठ द्यूत में वहाँ,
प्रण के पास फेंकते रहे ...
जो कुलवधू को चीर दे ,
वो प्रण ही क्या जो पीड़ दे,
जिस प्रण में ना करुण बसा,
अब धरा ना ऐसे वीर दे ...
अब धरा ना ऐसे वीर दे ...
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