
स्वीकार्य मुझे है मल शरीर,
पर छल से बन जाऊं न वीर,
क्या फिर से दान कवच होगा ,
क्या फिर चुप्पी साधे सच होगा ?
क्या रण में वीरों का भय होगा,
या रण भी चौसर से तय होगा ?
- अर्जुन
क्या सूत-पुत्र का भय तुमको ,
तुम क्यों व्याकुल हो मित्र यहाँ,
गांडीव जीते या विजय धनुष,
बन जाएगा चलचित्र यहाँ ,
जब फैलेगा रक्त-इत्र यहाँ ...
फिर कर्ण जीते या पार्थ यहाँ,
फिर जीतेगा पुरुषार्थ यहाँ ...
- कृष्ण
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